लिखे थे जो ख़त मैने बाते अब उसी मैं सिमट गई हैं। पन्नों से आगे जाने मैं वो भी कतरा रही हैं। श्याम हुई अब मगर अंधेरा होना अभी बाकी हैं। इस आशा के साथ मैने बहुत सी राते काटी हैं। ख़त में मैने गुलाब कि खुशबू भी डाली हैं। मिली या नही उसका पता लगना अभी बाकी हैं। इधर सूख गए हैं उसके पत्ते, अब शायद खुशबू के बिना ख़त भी अधूरा हैं । धीरे धीरे श्याम का सुरूर भी पुरा हैं । खुशबू के बिना अगर ख़त अच्छा लगे तो बता देना। वरना हो सके तो वो ख़त ही लौटा देना, समझलुगा कि यह एक सपना सुहाना था। जो सुबह हो कर ही टूट जाना था। खुशबू बाकी हैं या नहीं उस का पता नहीं। मगर ख़त जब लिखा था वो बात पुरानी नहीं। जब देखा था तुम्हें वो हकीकत पुरानी नहीं। ख़ूबसूत था वो सपना वो बात किसी से छुपा नी नहीं। हाँ! अधूरी ही रह जाती हैं कुछ कहानियाँ क्योंकि कुछ कहानी अधूरी ही ...